किंतु अब हमें यह या वह स्त्री या पुरुष, सक्रिय या निष्क्रिय, युक्तिसंगत या भावनात्मक आदि द्वित्वों का अतिक्रमण करते हुए किसी एकल व्यवस्था की ओर कदम बढ़ाने के बजाय स्त्री-पुरुष को साथ-साथ रखते हुए दोनों की अपनी-अपनी पहचान के साथ जीना सीखना होगा.
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किंतु अब हमें यह या वह स्त्री या पुरुष, सक्रिय या निष्क्रिय, युक्तिसंगत या भावनात्मक आदि द्वित्वों का अतिक्रमण करते हुए किसी एकल व्यवस्था की ओर कदम बढ़ाने के बजाय स्त्री-पुरुष को साथ-साथ रखते हुए दोनों की अपनी-अपनी पहचान के साथ जीना सीखना होगा।
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किंतु अब हमें यह या वह स्त्री या पुरुष, सक्रिय या निष्क्रिय, युक्तिसंगत या भावनात्मक आदि द्वित्वों का अतिक्रमण करते हुए किसी एकल व्यवस्था की ओर कदम बढ़ाने के बजाय स्त्री-पुरुष को साथ-साथ रखते हुए दोनों की अपनी-अपनी पहचान के साथ जीना सीखना होगा।